क्यों स्वयं प्रभु श्री राम को आना पड़ा अदालत में गवाही देने।
ये कहानी आज से चालीस साल पहले 1980 की है । जब बृंदावन में एक संत हुआ करते थे जो की प्रतिदिन भगवान जगदीस के मंदिर के बाहर जाते और वही की मिट्टी को अपने माथे पर लगा कर वापस लौट आते थे। किंतु वो मंदिर के अंदर नही जाते थे सभी लोग इन संत को जज साहब कर के बुलाते थे। जब एक बार एक व्यक्ति ने वहा के पुरोहित से पूछा की इन्हें सब जज साहब कर के कियू बुलाते है तब पुरोहित ने उन्हें सारी घटना बताते हुए कहा की एक समय की बात है जब ये संत दक्षिण भारत के एक छोटे से सहर में जज हुआ करते थे। उस सहर से लगे एक छोटे से गांव में एक केवट रहा करता था। जिसका नाम भोला था ये व्यकित न नाम से बल्कि स्वभाव से भी भोला था। ये व्यकित इतना सीधा- साधा था की अगर कोई भी इस से कुछ पूछता था किसी भी विसय में तो ये कहता था भईया मै तो कुछ नही जानता जो जाने रघुनाथ जी जाने भोला श्री राम का परम भगत था। वो चलते फिरते या कुछ कम करते उन्हें ही याद करता रहता था भोला के दो लड़के और एक लड़की थी । जब उसकी लड़की की शादी की उम्र हुई तब भोला के लड़कों ने उस से कहा की पिता जी बहन की शादी के लिए यहाँ के सेठ जी से थोड़े समय के लिए कुछ पैसे उधार ले लिया जाये और फिर हमलोग काम कर के ब्याज के साथ उस पैसे को लौटा देंगे । भोला ने ठीक वैसा ही किया उसने वहा के सेठ जी से कुछ समय के लिए कुछ रूपये ले लिए । फिर अपनी बेटी की शादी के बाद एक निश्चित अवधी में पूरे पैसे व्याज के साथ चूका दिए । जब भोला ने सेठ जी को पूरे पैसे लौटा दिए तो सेठ जी ने भोला को एक पर्ची दी जिसमे लिखा था कि उसने सेठ जी को पूरे पैसे ब्याज के साथ सेठ जी को वापस कर दिया है । सेठ जी ने भोला से कह देखो और पढ़ के बताओ इसमें क्या लिखा है । अब भोला तो बेचार अनपढ़ और सीधा-साधा था तो वो क्या जाने उसने हमेसा की तरह ही बोला की मै कुछ नही जानता जो जाने रघुनाथ जी जाने ये सुन कर सेठ के मन में लालच आगया और उसने भोला से बोला भोला जरा मेरे लिए एक ग्लास पानी ले आओ जब भोला पानी लेने गया तब सेठ ने उस पर्ची को दूसरे पर्ची से बदल दिया । जिसमे लिखा था कि अभी इसने पूरे पैसे नही दिए है । फिर कुछ दिनों बाद सेठ ने अदालत में भोला पर केस कर दिया । जब जज ने भोला से इस बारे में पूछा तब भोला ने वो पर्ची दिखाई जो उसके पास रखी थी। परन्तु उस पर्ची में लिखा था इसने अभी पुरे पैसे नही चुकाई जब जज ने भोला को बताया कि उस पर्ची में क्या लिखा था तब भोला जोर- जोर से रोने लगा फिर उसने हमेसा की तरह बोला मै कुछ नही जानता जो जाने रघुनाथ जी जाने। जज थोड़ा दयालु था उस दिन अदालत का समय ख़तम होने के बाद उसने भोला को बुलवाया और पूछा जब तुमने उस सेठ को पैसे चुकाए तब क्या तुम दोनों के अलाव और कोई व्यक्ति वहा मौजूद था । तब भोला ने जवाब दिया की हमदोनो के सिवा वहा सिर्फ रघुनाथ जी मौजूद थे और कोई भी नही था। जज को लगा लगता है ये कोई गांव में रहने वाला कोई व्यकिती होगा फिर उसने भोला को जाने को कहा और सोचा ये व्यकिती तो गरीब है । तो कियू न मैं नही रघुनाथ की नाम की चिट्ठी लिख कर उसे अदालत में हाज़िर होने को कहु और फिर उसने उस गांव में रघुनाथ जी की नाम की एक चिट्ठी भेज दी। पोस्टमैन चिट्ठी ले कर घूमता- घूमता परेसान होगया परन्तु रघुनाथ नाम का व्यकिती का घर या रघुनाथ नाम के व्यकिती के बारे में कुछ पता चला । क्युकी उस गांव में रघुनाथ नाम का कोई व्यकिती था ही नही अन्त में एक व्यकिती ने बताया यहा पर रघुनाथ जी का मंदिर है ।हो सकता है की ये चिट्टी वहा की हो फिर पोस्टमैन ने वैसा ही किया वो उसी रघुनाथ जी के मंदिर में गया जहां भोला रहता था । उसने चिट्टी मंदिर के पंडित को पकड़ा दी जब उस पंडित ने चिट्टी देखि तब उसने मन ही मन सोचा प्रभु जब आपने चिट्टी मंगवाही ली है तो मैं इसे रख लेता हूं और फिर पोस्टमैन से चिट्टी ले कर हस्ताक्षर कर दिए और उस चिट्टी को मंदिर में ले जा कर प्रभु के चरणों में रख दिया और प्रभु से भाबूक हो कर प्रभु से प्राथना की हे भगवान आपके अलावा इस भोले व्यकिती का कोई भी नही है अब आप ही को करना है जो करना है । जब अदालत में हाज़िर होने का दिन पास आई तब उस पंडित ने भोला को एक दिन पहले ही सहर भेज दिया ताकि वो समय से वो वहा पहुँच जाये और फिर उस अदालत की तारीख वाली दिन पंडित जी सुबह के जल्दी उठ कर भगवान को वस्त्र अर्पण कर तैयार कर दिया और उनकी पूजा कर प्राथना की, कि हे प्रभु इन वस्त्रो में जो भी आपको पसंद आये वो पहने लेकिन कृपा कर के अदालत में जरूर जाये और उस भोला की मदत जरूर करे अब भगत तो भाभूक होते है और उसने भी ऐसे ही भाभूक होक प्राथना की जब अदालत में जज ने भोला से पूछा कहा है तुम्हारे रघुनाथ जी तब भोला ने जवाब दिया वो तो हर जगह रहते है । होंगे यही कहि आस पास फिर जज ने अपने चपरासी को रघुनाथ नाम के व्यकिती को हाजिर होने के लिये ऐलान करने का आदेश दिया । जब चपरासी ने जोर-जोर से चिलाने सुरु किया कि रघुनाथ नाम के व्यकिती जहा भू भी हो हाज़िर होजाए ऐसा उसके दो से तीन बार चिलाने के बाद सब ने देखा एक बूढ़ा सा व्यकिती जिसके माथे पर तिलक गले में तुलसी की माला और पैरों में खड़ाऊ पहने थोड़ी कमर झुकाये और लाठी टेकते चला आरहा है फिर उसे कटघड़े में खड़ा कर के जब जज ने उस से पूछा क्या तुम्हारे सामने भोला ने सेठ को पूरे पैसे चूका दिए है तब उसने जवाब दिया। हाँ! फिर जज ने कहा तुम्हारे पास क्या सबूत है तब उस रघुनाथ नाम के बूढ़े व्यकिती ने कहा कृपया सेठ जी को यही रोके और इनके घर सिपाही भेजे कर तीन अलमारियों में से बिच वाली अलमारी में रखी बाइस नंबर की फाइल खोल के देखि जाये तो आपको वो पर्ची मिल जायेगी जिसमे सेठ ने भोला के द्वारा चुकाए गये सारे पैसे की पुष्टि की है । जज ने वैसा ही किया सेठ जी को यही रोक कर जब सिपाही भेजे गए तब वो पर्ची वही मिली जिसे देख कर जज ने भोला को बरी कर दिया और उस सेठ को दण्डित भी किया। फिर उस गवाह के जाने के बाद जज ने भोला से पूछा की ये रघुनाथ कहा रहता है । तब भोला ने कहा वही जहा हम रहते है जज ने पूछा तुम कहा रहते हो भोला ने कहा मंदिर में फिर जज साहब ने कहा क्या इन्होंने ये मंदिर बनवाया है । भोला ने बोला साहेब अब मैं आपको क्या समझाऊ आप पढ़े लिखे है क्या है कि पढ़े लिखे लोगो को भगवान और भक्ति के बारे में समझाना थोड़ा कठिन है। फिर भोला ने बोला ये वो है जो इस मंदिर में बैठे है । भोला के जाने के बाद जज साहब ने पोस्टमैन को बुला कर पूछा की वो कौन है तब पोस्टमैन ने बताया कि ये वो व्यकिती नही है जिसने चिट्ठी ले ते वक्त हस्ताक्षर किये थे । जब जज साहब गांव में गये तब उन्हें सारी घटना का पता चला तब वो तुरंत अपने बंगले मे लौटे और फुट- फुट कर रोने लगे और उन्होंने उसी दिन अपने पद से इस्तीफा दे दिया । जब लोगो ने उनसे कहा ये तो ख़ुशी की बात है की भगवान के आपको दरसन हुए तो आप रो कियू रहे तब उन्होंने कहा जिसकी अदालत में हर कोई को हाज़िर होना है वो स्वयंम मेरे अदालत में आये गवाही देने जब वो खड़े थे तब मैं बैठा हुआ था। ऐसा कहा कर वो जोर- जोर से रोने लगे । फिर जज साहब पूरा व्यरागये ले कर बृंदावन चले गए और साधु- संत जैसी जिंदगी व्यतीत करने लगे और बाहर से ही वहा की मिट्टी को अपने माथे पर लगा कर वापस लौट जाते और वो अक्सर खड़े रहते थे उनका मानना था कि प्रभु की आगमन पर मैं बैठा था तब मैं खड़ा ही ठीक हु। उनका ये भी कहना था कि मैं किस मुह से मंदिर के अंदर जाऊ इसलिए मैं बाहर ही रहता हूं ।
भोला की सच्ची श्रद्धा ने खुद भगवान को बेबस कर दिया धरती पर आके उसके लिए गवाही देने के लिए ।इसलिए हमें किसी भी प्रस्तिति में हमेसा भगवान के ऊपर अपनी पूरी श्रद्धा रखनी चाहिए क्युकी भगवान किसी न किसी रूप में हमारी मदत जरूर करते है । कोई जरूरी नही है कि आप मंदिर या कोई बड़ी पूजा कर के ही भगवान की पूजा करे आप सच्चे दिल से भी भगवान को आप किसी भी प्रस्तिति में कही भी किसी समय भी आपकी मदत करने आएंगे ही आपके पिता , माता या किसी दूसरे रूप में । "जय श्री राम"
इस पोस्ट को हर किसी के पास सेंड करे ताकि उन्हें भी भगवान की कृपा इस कोरोना बीमारी की वक्त मिले ।
Jai sri ram
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